Wednesday, 20 January 2016

उम्मीद...

आराम कुर्सी की उम्मीद में
लिख रहा हूँ
इतना कुछ...

की फिर नसीब होगा
एक बोलता कमरा
जहाँ बोेलेंगी छतें
और खिड़कियाँ...

और जहाँ एक सफ़ेद कुर्ता
टँगा होगा,
पसीने के दाग लिए..
इंतज़ार की खूँटी पर..

जिसे पहनने के लिए
लहज़े में बूढ़ापन दिखाना होगा
जैसे कमर और घुटनों में दर्द..
और दिखाने होंगे
कुछ सफ़ेद बाल
और उसी कुर्ते में से एक पुराने शख्स को
निकाल फेकना होगा..

कोई पढ़ेगा तो
ये भी लगेगा कि
एक खाली बरामदे की उम्मीद में
लिख रहा हूँ
इतना कुछ..
जहाँ किसी इंसान के पैरों की आहट सुन
पत्ते और हवा की
सरसराहट बढ़ जाती है..

फिर एक नन्ही ऊँगली के
सहारे की उम्मीद में भी
लिख रहा हूँ
इतना कुछ...
जो की मेरा हाथ थामे
मुझसे कहानियों के
अगले हिस्से को जानने की
ज़िद करेगा..

इन्ही उम्मीदों की ना-उम्मीदीं में
डायरी का हर एक पन्ना भरा पड़ा है..
और मैंने लिखी है तो बस उम्मीद..

जी हाँ 'उम्मीद'..
-राम त्रिपाठी
20जनवरी2016

Monday, 11 January 2016

रा से राम

यहाँ ज़मीन में पारदर्शी होकर
आकाश में परछाइयाँ मेरी
शब्द खोजती हैं..
कई बार पूछा,
शब्द मिलते कहाँ से हैं
मेरा उत्तर था, 'तुमसे'...

-रा से राम