Tuesday, 17 May 2016

बदलाव...

तुम्हारी प्रतीक्षा में
यह बदलाव स्वाभाविक था..
निष्ठुर बनना मेरा औचित्य नहीं था
और हुआ भी नहीं
मैं बस अन्य को
ऐसा प्रतीत होने लगा
फिर जैसे कोई स्वछंद हवा
जो आच्छादित वृक्षों की निद्रा असहज
भंग कर देती है...
वैसे ही निर्भीक हो गया..

और जैसे कोई सरिता(नदी) पत्थरों को चीरती
मुस्कुराती
बह निकलती है ना
अपने अस्तित्व को
विशाल उदधि(समंदर) में समाप्त करने..
ठीक उसी तरह..
किसी समूह में मिलकर
सुख मिलने लगा
अलगाव नहीं
और ना ही स्वयं को भिन्न दिखाना...

मैं बस ऐसा प्रतीत भर होता हूँ
दर्पण अब भी मेरे भीतर का
वही मनुष्य उकेरना चाहता है
जो व्यर्थ मुस्कुराता था...

-राम त्रिपाठी
ब्लॉग_मेरी कलम

Thursday, 12 May 2016

भावनायें

मैं जब भी आहत होता हूँ
तो आसमान निहारता हूँ
और यह देखता हूँ
कि कोई तारा आसमान में
अकेला है क्या...
और शरीर के दाहिने बाजू
एक मद्धम सा तारा
अकेला दिखता है...

फिर मुस्कुराता हूँ
और भूल जाता हूँ,
उन लबों को जिसने मुझे यूँ ही कुछ भी बोल दिया..
हाँ बस इतना कहना चाहता हूँ
कि मेरा शरीर, मेरा ह्रदय, मेरे नेत्र
यह सब द्वितीय हैं..

मेरी भावनायें प्रथम है...

-राम त्रिपाठी

Friday, 1 April 2016

कुछ भी ना लिखूँ...

कुछ भी लिख देने से अच्छा है
कुछ भी ना लिखूँ..
क्यूँ पन्नों पर बे फिज़ूल
स्याही को फैलाता चलूँ

ऐसा लगता है
कुछ रोज़ घर की दीवारों से
बेमतलब की बात करूँ
उनकी दरारों को छूकर
उनके दर्द का एहसास बनूँ
और खिड़कियों की काँच पर लगी भाप पर
तुम्हारा नाम लिखूँ
फिर इंतज़ार करूँ
एक ख्याल के दिल से टकराने का...
और तुझे पहले से करीब पाने का..

इंतज़ार भी मोहब्बत के महीने का
और तेरी जुल्फों की छाँव में सुकूँ पाने का..
एक सुबह जो तेरे चेहरे के मानिंद हो
और एक शाम तेरी आगोश में गुनगुनाने का..

ऐसे ही कुछ भी लिख देने से तो अच्छा है ना
की कुछ भी ना लिखूँ...

©राम

Sunday, 21 February 2016

my struggle...

...in the story of my success
i will never remember you
for my struggle
i will jus remember you as a friend
who neither helped me nor laughed on me..
though you have given me a lot
as a companion..
but then also i felt that i am alone
in my never ending journey..

so, my seclusion proved my struggle not you..

later beautiful roads were led by ugly thorns..
i looked at you...
yes, i looked at you
with the expression of pain..
you ignored..

so my blood proved my struggle
not you

in the story of lonely nights
i will never remember you
for my imaginations and dreams

though you were my sky
and my star

the whole night i waited
waited for the part of you
not the whole you...

so, being linger proved my struggle not you...

©ram tripathi

Wednesday, 17 February 2016

सबब की रात...

यहाँ तरकीब ऐसी है
की दिखलाऊँ चाँद आँखों में
सबब की रात बन जाऊँ
सुबह आये ना राहो में..
कभी पत्थर कभी बारिश
कभी बन प्यास रह लूँगा
मेरी बहती नदी हो तुम
सफ़र में साथ बह लूँगा ...

©राम

Saturday, 6 February 2016

सुख किसी के आने में है..

किसी के जाने से
एक साधारण मनुष्य
निर्जीव हो जाता है
कुरूप हो जाता है
आँखों के कोरों पर
काले धब्बे पड़ जाते हैं..

इतना तो मैं समझ गया
कि जाना हर वक़्त पीर देता है..

फिर तेरे आने में,
ऐसा क्या है
की वो वृक्ष जो अपनी सुंदरता पर
फूला नहीं समाता था..
आज पर्णहीन हो गया
नग्न हुआ है
सबकी उपेक्षा का पात्र बना हुआ है..

मुझे बताने वाले ऐसा बता गए
की किसी के जाने में दर्द
और आने से सुख मिलता है...
मैंने महसूस भी कुछ ऐसा ही किया..

अब पतझड़ जाकर समझा उस वृक्ष को
वो नाराज़ है..
कहता है तेरे जाने में ही सुख है
आने में नहीं...

उसे ये समझाना ज़रूरी है..
कि सुख जाने में नहीं है
बल्कि किसी के आने में है...

-राम

Wednesday, 20 January 2016

उम्मीद...

आराम कुर्सी की उम्मीद में
लिख रहा हूँ
इतना कुछ...

की फिर नसीब होगा
एक बोलता कमरा
जहाँ बोेलेंगी छतें
और खिड़कियाँ...

और जहाँ एक सफ़ेद कुर्ता
टँगा होगा,
पसीने के दाग लिए..
इंतज़ार की खूँटी पर..

जिसे पहनने के लिए
लहज़े में बूढ़ापन दिखाना होगा
जैसे कमर और घुटनों में दर्द..
और दिखाने होंगे
कुछ सफ़ेद बाल
और उसी कुर्ते में से एक पुराने शख्स को
निकाल फेकना होगा..

कोई पढ़ेगा तो
ये भी लगेगा कि
एक खाली बरामदे की उम्मीद में
लिख रहा हूँ
इतना कुछ..
जहाँ किसी इंसान के पैरों की आहट सुन
पत्ते और हवा की
सरसराहट बढ़ जाती है..

फिर एक नन्ही ऊँगली के
सहारे की उम्मीद में भी
लिख रहा हूँ
इतना कुछ...
जो की मेरा हाथ थामे
मुझसे कहानियों के
अगले हिस्से को जानने की
ज़िद करेगा..

इन्ही उम्मीदों की ना-उम्मीदीं में
डायरी का हर एक पन्ना भरा पड़ा है..
और मैंने लिखी है तो बस उम्मीद..

जी हाँ 'उम्मीद'..
-राम त्रिपाठी
20जनवरी2016

Monday, 11 January 2016

रा से राम

यहाँ ज़मीन में पारदर्शी होकर
आकाश में परछाइयाँ मेरी
शब्द खोजती हैं..
कई बार पूछा,
शब्द मिलते कहाँ से हैं
मेरा उत्तर था, 'तुमसे'...

-रा से राम