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काश मैं एक लेखक के साथ-साथ एक जादूगर भी होता,
तो मेरी कलम से ना जाने मैं कैसे-कैसे करतब दिखाता।।।
सबसे पहले तो मैं अपनी कलम से उस नन्ही लड़की का छोटा कमरा, जहाँ वो पैरों को मोड़कर सोती है उसे थोडा बड़ा कर देता, ताकि वो पैरों को फैलाकर सुकून से सो सके।
नहर पर पुल ना होने की वजह से नन्हे राजू को हर रोज स्कूल जाने में देरी होती है, मैं उसी नहर पर अपनी कलम से एक छोटा पुल बना देता और राजू दौड़ते हुए पुल पार कर जाता।।
मीलों तपती धुप में सर पर पानी का मटका लिए पानी की तलाश करने वाली औरतों के लिए अपनी कलम से उनके घर के पास ही एक तालाब बना देता..
जहाँ वो बिना थके मुस्कुराते हुए पानी भरती..।।
मुसाफिर को उसकी मंजिल से अगर मिला नहीं पात़ा तो क्या??
अपनी कलम से उसके लिए रास्ते में एक अमलताश का पेड़ बना देता जो उसे छाँव और कुछ पल का आराम देता।।
ठिठुरती ठण्ड में फुटपाथ पर सोने वालों की चद्दर अपनी कलम से थोड़ी और बड़ी कर देता ताकी उनके पैर चद्दर से बाहर ना निकलते और उनकी नींद ना टूटती।।
काश मैं एक लेखक के साथ-साथ एक जादूगर भी होता,
तो मेरी कलम से ना जाने मैं कैसे-कैसे करतब दिखाता..
पर इस काश और वास्तविकता के बीच का अंतर देखकर मन को दुःख होता है,और शायद इसी उलझन में मेरी और मेरी कलम की अनबन रात भर चलती है,पर यथार्थ तो यह है की मैं केवल एक अदना सा लेखक हूँ, कोई जादूगर नहीं।।
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-राम त्रिपाठी