Saturday, 30 May 2015

कुछ गोबर के उपले
एक खपडैल घर
नज़र में कच्चे रस्ते
और एक सूखी नहर..

गाँव में शहर सा कुछ नहीं था
पर दिन अच्छे निकलते थे...

©राम

ये जो हमारे किरदार में
अब खासा फर्क है
यूँ ही नहीं आया
पहले हम मिले
अच्छे लगे
फिर बात की
और राहें अलग...
शायद ऐसा ही हुआ था
हाँ मगर,
पुरानी बात है
बस कुछ अधकचा सा याद है...

©राम

शहर ठहर कहाँ भागता है,
मैं गाँव से हूँ, इतनी रफ़्तार कहाँ..

यहाँ वहाँ बेबस उदासी है
मैं ख़ुशी बाटता हूँ, ख़ुशी का हक़दार कहाँ...

©राम

मोहतरमा वक़्त बहुत हुआ
अब अंदाज़ बदलो,
नए दौर का इश्क़ है
इतनी देर चलता नहीं...

©राम

Thursday, 28 May 2015

रफ्त-ए-नूर पर बेखयाली है,
सिर के बाल भी बिखरे हुए है..
कोई पूछे मैं पहले बता दूँ
ये रतजगा इश्क़ है,
अभी कल ही हुआ है...

©राम

Wednesday, 27 May 2015

मुसीबत है
मुसीबत
जिसे सब इश्क़ कहते हैं..

गनीमत है
गनीमत
हम इससे दूर रहते हैं...

©राम

Tuesday, 26 May 2015

ये जो आइना टूटा पड़ा है...

ये जो आइना
फर्श पर टूटा पड़ा है,
ऐसे नहीं टूटा,
कि इसने कुछ ऐसा दिखाया
जो मुमकिन नहीं
पर खलिश सच है
फिर किसी ने
पाँव रखा है...

©राम

तुम्हारे बिस्तर की सलवट,
ये बताती है,
तुम नाराज़ थे कुछ देर तक
फिर थक कर सो गए थे..

और फिर नाराज़ है तुमसे
बिस्तर से गिरी तकिया भी..
जो तुम्हारे पाँव से कल रात
नीचे गिर गयी थी...

©राम

Monday, 25 May 2015

कुछ आईने, खुद के मायने
देखने के लिए लाये थे,
खिड़कियों के बाहर हज़ार चेहरे
कुछ गम छुपाए बैठे थे।
कोई गुफ्तगू कोई आरजू
कोई यार भी नहीं बना,
जो तेेरी ज़ुल्फों में,
इतनी रोज़ घर बनाए बैठे थे।

©राम

Sunday, 24 May 2015

अरे सुन वफ़ा के काफिले
मुझको भी शामिल कर,
हाँ मगर, इतना बता दूँ,
मेरा इश्क़ इकतरफा है...

©राम

Saturday, 23 May 2015

सुनो, लिखते हुए मेरी एक तस्वीर ले लेना,
मुझे दुनिया को बतलाना है, मैं हूँ बड़ा शायर...

©राम

बेतरतीब इश्क़ और उसपर से तेरा मुकर जाना,
ये फिर इश्क़ ना हुआ , सेल्स का टारगेट है...

©राम

Wednesday, 20 May 2015

यही सच है मेरी अपनी गली का...

ये जो बिजली के तार मेरी छत से
तुम्हारी छत को जोड़ते थे..
ये तुम्हारी मुस्कराहट को
मुझतक,
बिजली की तरह लाते थे...
पर फिर लोग बढे,
नए घर बने
और,
अब जब सड़क से देखता हूँ
तो ये दो तार कुछ और तारों में उलझ से गए हैं..
ये है सच मेरी अपनी गली का...

मेरी कलम में मोहब्बत तो है
पर स्याही तेरी वफ़ा की अब मिलती नहीं..

©राम

ज़िन्दगी यूँ तो चलती नहीं...

मेरी कलम में मोहब्बत तो है
पर स्याही तेरी वफ़ा की मिलती नहीं..

जीने को तो जी रहे हैं कई 'दिल' यहाँ..
पर नादान ज़िन्दगी यूँ तो चलती नहीं...

Tuesday, 19 May 2015

हवा आयी थी...

जब तुम खिड़की पर पाँव रखकर
ख्वाब में खोये हुए थे ..
तुमने देखा नहीं..
हवा आयी थी
कुछ बारिश के छींटे संग लेकर...

©राम

Monday, 18 May 2015

कुछ नहीं बदला...

वही राहों का मुड़ना
वही दम ख़म हवा का..
वही बहके नज़ारे
वही मौसम वफ़ा का..

वही खिड़की वही छज्जे
वही बिजली के खम्भे
वही नुक्कड़ वही बातें
कुछ बिखरे से चेहरे..

हाँ मानता हूँ कि कुछ नहीं बदला,
पर लौटने वाले अब तक नहीं आये...

©राम

Sunday, 17 May 2015

घर में कोई नहीं तेरे सिवा फिर हुआ क्या
रुक आईने से पूछता हूँ, उसने कहा क्या...

©राम

पापा कहतें हैं....

मैं खुद से दूर जाता हूँ
तो है कोई जो खींच लाता है
ये ऐसा शख्स है
जो मेरे लिए बारिशों में छत बनाता है
बिखरने के कई मौसम
वो मेरा हाथ पकडे
मेरे साथ चलकर
मुझे ओझल हुई मंज़िल दिखाता है...
मैं खो जाऊँ बिखर जाऊँ
वो रस्ते याद रखता है
मैं अच्छा बन सवँर जाऊँ
यही फ़रियाद करता है ..
कभी साहिल
कभी साथी
कभी हमदम बने
कभी मौसम
कभी सूरज
कभी बारिश बने
कई किरदार है इस शख्स में
जो मेरे गम भगाता है..
मेरे "पापा" छुपे रुस्तम हैं
उन्हें कोई जादू सा आता है...

©राम

ख्वाब से परे हकीकत..

कही ख्वाब कही ख्वाब से परे हकीकत
कहीं दर्द तो कहीं बस नसीहत
ये रुक रुककर आँसू आँखों से
बहता हुआ पलकों को छोड़
जब गालों तक आया,
उसने सोचा हाथों से पोछ तो लूँ,
पर ऐसा हुआ कि
ये मदद हवा के
एक सख्त झोकें ने कर दिया,
और आँसू सूख गया..
फिर लग गया अपने काम में..

इस शहर की यही बात तो
उसे अच्छी लगती है...
यहाँ ज़िन्दगी लाख धोखे दे,
पर सच्ची लगती है...

Friday, 15 May 2015

अर्ध प्रेम...

तुम्हारी स्मृति में
मेरा मार्ग दर्शन करता
तुम्हारा ह्रदय...
सौम्य तो है
पर जटिल भी
बस देखना ये है कि
तुम्हारी मुस्कान से शुरू हुए,
इस अर्ध प्रेम में मंत्रमुग्ध हुए
मेरे विचलित क़दमों को
ये कहाँ तक ले जायेगा..

अभी मैं शुन्य हूँ...

©राम