Sunday, 31 May 2015
Saturday, 30 May 2015
Thursday, 28 May 2015
Wednesday, 27 May 2015
Tuesday, 26 May 2015
ये जो आइना टूटा पड़ा है...
ये जो आइना
फर्श पर टूटा पड़ा है,
ऐसे नहीं टूटा,
कि इसने कुछ ऐसा दिखाया
जो मुमकिन नहीं
पर खलिश सच है
फिर किसी ने
पाँव रखा है...
©राम
Monday, 25 May 2015
Sunday, 24 May 2015
Saturday, 23 May 2015
Wednesday, 20 May 2015
यही सच है मेरी अपनी गली का...
ये जो बिजली के तार मेरी छत से
तुम्हारी छत को जोड़ते थे..
ये तुम्हारी मुस्कराहट को
मुझतक,
बिजली की तरह लाते थे...
पर फिर लोग बढे,
नए घर बने
और,
अब जब सड़क से देखता हूँ
तो ये दो तार कुछ और तारों में उलझ से गए हैं..
ये है सच मेरी अपनी गली का...
मेरी कलम में मोहब्बत तो है
पर स्याही तेरी वफ़ा की अब मिलती नहीं..
©राम
ज़िन्दगी यूँ तो चलती नहीं...
मेरी कलम में मोहब्बत तो है
पर स्याही तेरी वफ़ा की मिलती नहीं..
जीने को तो जी रहे हैं कई 'दिल' यहाँ..
पर नादान ज़िन्दगी यूँ तो चलती नहीं...
Tuesday, 19 May 2015
हवा आयी थी...
जब तुम खिड़की पर पाँव रखकर
ख्वाब में खोये हुए थे ..
तुमने देखा नहीं..
हवा आयी थी
कुछ बारिश के छींटे संग लेकर...
©राम
Monday, 18 May 2015
कुछ नहीं बदला...
वही राहों का मुड़ना
वही दम ख़म हवा का..
वही बहके नज़ारे
वही मौसम वफ़ा का..
वही खिड़की वही छज्जे
वही बिजली के खम्भे
वही नुक्कड़ वही बातें
कुछ बिखरे से चेहरे..
हाँ मानता हूँ कि कुछ नहीं बदला,
पर लौटने वाले अब तक नहीं आये...
©राम
Sunday, 17 May 2015
पापा कहतें हैं....
मैं खुद से दूर जाता हूँ
तो है कोई जो खींच लाता है
ये ऐसा शख्स है
जो मेरे लिए बारिशों में छत बनाता है
बिखरने के कई मौसम
वो मेरा हाथ पकडे
मेरे साथ चलकर
मुझे ओझल हुई मंज़िल दिखाता है...
मैं खो जाऊँ बिखर जाऊँ
वो रस्ते याद रखता है
मैं अच्छा बन सवँर जाऊँ
यही फ़रियाद करता है ..
कभी साहिल
कभी साथी
कभी हमदम बने
कभी मौसम
कभी सूरज
कभी बारिश बने
कई किरदार है इस शख्स में
जो मेरे गम भगाता है..
मेरे "पापा" छुपे रुस्तम हैं
उन्हें कोई जादू सा आता है...
©राम
ख्वाब से परे हकीकत..
कही ख्वाब कही ख्वाब से परे हकीकत
कहीं दर्द तो कहीं बस नसीहत
ये रुक रुककर आँसू आँखों से
बहता हुआ पलकों को छोड़
जब गालों तक आया,
उसने सोचा हाथों से पोछ तो लूँ,
पर ऐसा हुआ कि
ये मदद हवा के
एक सख्त झोकें ने कर दिया,
और आँसू सूख गया..
फिर लग गया अपने काम में..
इस शहर की यही बात तो
उसे अच्छी लगती है...
यहाँ ज़िन्दगी लाख धोखे दे,
पर सच्ची लगती है...
Friday, 15 May 2015
अर्ध प्रेम...
तुम्हारी स्मृति में
मेरा मार्ग दर्शन करता
तुम्हारा ह्रदय...
सौम्य तो है
पर जटिल भी
बस देखना ये है कि
तुम्हारी मुस्कान से शुरू हुए,
इस अर्ध प्रेम में मंत्रमुग्ध हुए
मेरे विचलित क़दमों को
ये कहाँ तक ले जायेगा..
अभी मैं शुन्य हूँ...
©राम