Sunday, 9 November 2014

बेज़बान मोहब्बत...

तुम रो कर जब भी गले लगती हो...
हजारों ख्वाहिशें,
हजारों सवाल,
हजारों इलज़ाम होते हैं
तुम्हारे उन आंसुओं में..
पर आंसुओं की जबान तो दिल ही समझते हैं
और फिर मेरा दिल रेगिस्तान की रेत की तरह,
सोक लेता है तुम्हारे आंसुओं को...
कुछ देर बाद तो लगता है, जैसे कुछ हुआ ही ना हो..
तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा देखकर,
मैं भी हँसते हुए तुम्हारी आँखों से बहे हुए काजल को समेटने की कोशिश करता हूँ,
और तुम मुझे महसूस करवाती हो की एक बार फिर से मैंने तुम्हे जीत लिया..
पर ऐसा ना जाने क्या है तेरे और मेरे दरम्या...
की जबान की जरुरत ही नहीं पड़ती।।
बस तुम्हारे रोने और हँसने मात्र से सब समझ जाता हूँ..
और बिना बोले तुम्हारे हर सवाल का जवाब भी देता हूँ..
फिर समझ में आता है की मोहब्बत फ़कत हाड़-मांस का रिश्ता नहीं,
बल्कि रूह का रिश्ता है,
जहाँ शब्द नहीं केवल एहसास पिरोने पड़ते हैं।

-राम त्रिपाठी

Sunday, 2 November 2014

दिल बड़ा...

करोड़ों हसरतें...
लाखों दर्द भी...
हजारों मुश्किलें...
सैकड़ों मर्ज़ भी...
आँखों को आँख दिखाता हुआ दिल
मुझसे कहता है कभी मुस्कुराता हुआ तो मिल..
मैंने मेरे कमरे में शराब की लत में पड़े ग़ालिब से
पूछा,
दिल की परेशानी क्या है ये किस बात पर अड़ा है..
ग़ालिब ने बे-इन्तेहा नशें में कहा
शायद तेरा दिल तेरे जिस्म से बड़ा है।।
ग़ालिब की बात सुनकर मैं ही नहीं
मेरे पन्ने पर लिखें हर एक हर्फ़ मुस्कुराने लगे
फिर क्या रात भर जाम पर जाम टकराने लगे..

-राम त्रिपाठी