तुम रो कर जब भी गले लगती हो...
हजारों ख्वाहिशें,
हजारों सवाल,
हजारों इलज़ाम होते हैं
तुम्हारे उन आंसुओं में..
पर आंसुओं की जबान तो दिल ही समझते हैं
और फिर मेरा दिल रेगिस्तान की रेत की तरह,
सोक लेता है तुम्हारे आंसुओं को...
कुछ देर बाद तो लगता है, जैसे कुछ हुआ ही ना हो..
तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा देखकर,
मैं भी हँसते हुए तुम्हारी आँखों से बहे हुए काजल को समेटने की कोशिश करता हूँ,
और तुम मुझे महसूस करवाती हो की एक बार फिर से मैंने तुम्हे जीत लिया..
पर ऐसा ना जाने क्या है तेरे और मेरे दरम्या...
की जबान की जरुरत ही नहीं पड़ती।।
बस तुम्हारे रोने और हँसने मात्र से सब समझ जाता हूँ..
और बिना बोले तुम्हारे हर सवाल का जवाब भी देता हूँ..
फिर समझ में आता है की मोहब्बत फ़कत हाड़-मांस का रिश्ता नहीं,
बल्कि रूह का रिश्ता है,
जहाँ शब्द नहीं केवल एहसास पिरोने पड़ते हैं।
-राम त्रिपाठी