Friday, 24 October 2014

Dont let the child in you die...

आज जब माँ ने मिठाई का डब्बा मेरे सामने किया तो एक हाथ बड़ी मशक्कत से उठा और मैंने एक मिठाई का टुकड़ा उठा लिया।
पर फिर सोचने लगा कुछ साल पहले माँ मेरे सामने मिठाई का डिब्बा लाती ही नहीं थी क्यूँकी उनको पता था की मिठाई का एक डिब्बा भी मेरे लिए काफी नहीं था..
घर के कोने-कोने छिपी मिठाई नमकीन बिस्कुट ढूँढ-ढूँढ कर खा जाता था,
फिर कुछ सालों में ही ऐसा क्या बदल गया..
कहीं मैं बड़ा तो नहीं हो रहा ???
कही मेरे अन्दर का बचपन मुझसे जुदा तो नहीं हो रहा..
नहीं,नहीं ऐसा नहीं हो सकता..
मैं ऐसा नहीं होने दूंगा,
जिस दिन मेरा बचपन मुझमें से बिलुप्त हो गया,
उस दिन मेरा अस्तित्व ख़तम हो जायेगा।
मुझमें बचपना है तो मैं हूँ..
इसी डर से मैं उठा और फिर से पहुँच गया मिठाई के डिब्बे के पास।
इस बार दोनों हाथों में भर लिया मिठाई को।।
माँ मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी और शायद यही सोच रही होंगी की कितना बचपना है इसमें??
और मैं उनकी इसी सोच को सोचकर मुस्कुरा रहा हूँ और मिठाई खाए जा रहा हूँ।
और शायद यही जिद मुझे मेरे बचपन के करीब रखेगी और शायद डाइबेटिस से दूर।
ऐसी जिद मैं निरंतर करता रहूँगा।।

-राम त्रिपाठी

नोट: अपने अन्दर के बचपन को बूढ़ा मत होने दीजिए, वो जवान रहेगा तो आप जिंदादिल रहेंगे, बाकी उमर का कैलकुलेशन हरदम चलता रहेगा।

Thursday, 23 October 2014

A clear rejection...

Reject me i promise i will not oppose..
But reject me with a reason..
I wont even ask you..
But make sure you should have a reason
A proper reason to reject me..
Come up with a reason which is enough to degrade me
Which will vaporize me like water from the heat of your heart..
Let me see it..let me feel it..
I myself will leave you after that..
But if its your choice to not to talk to me
Then i will behave very unreal
like a rose which is born on concrete..
Then i will behave contrary to my emotions..
Then i am not going to listen to my heart anymore..
Then i will behave like i dont how to walk
and my mind(not my heart)will support me like a supporter for every single step..

Do you want me to behave real with heart or unreal with mind???
Choice is yours...

-Ram Tripathi

Note: We all know that love is in the air but now a days air is very much polluted. Isn't it???

Tuesday, 21 October 2014

जीने का आसान तरीका...

कुछ लोगों का झुंड अपनी तरफ आते देखकर मैं घबरा गया...उनके कपड़ो को और नारों को सुनकर मैं भी जोर-जोर से चिल्लाने लगा...
जय श्री राम...
जय श्री राम...
वो भीड़ जैसे-जैसे मेरे पास आ रही थी मैं और जोर से चिल्लाने लगा...उस भीड़ ने मुझे अपना समझकर छुआ तक नहीं।
मैं आगे बढ़ा...फिर एक झुंड देखा वैसे ही लोग थे बस नारे अलग थे इस बार..
मेरी ओर आते देख मैं फिर चिल्लाया..
या अली..
या अल्लाह..परवरदिगार।।
यहाँ भी वही हुआ...भीड़ के लोग मुझे अपना मान बैठे और मैं फिर बच गया।

देखा आपने, कितना आसान है मेरे ऑफिस से मेरे घर का रास्ता...

-राम त्रिपाठी
नोट: मैं अपना धर्म नहीं बताऊँगा आप खुद अनुमान लगाईए।

Sunday, 19 October 2014

No Regrets...


Regrets are often more painful than memories because memories sometimes do have some kind of positivity but then regrets are always dipped into the lake of sadness and demotivation.

I am also going through the stairs of regrets and there I find myself very unromantic and rude
So she left me..
I was so rude that I didn’t even stop her.
She was into tears.
And I was like, there are many like you in this world.
She said that, she will never comeback.
And I was like expressionless joker, no happiness and no sadness either.

So I have a regret of being unromantic lover.

Then on the second step I found some of my friends smiling, sharing jokes around but they are not talking to me.
Earlier few years back they called me in their good and bad times
But I was so busy making money
And  I ignored them completely.

So I have a regret of being unfriendly and selfish.

Then on the third ladder, I found my mom and dad.
I remember when I left her, my mom and dad were very happy.
But then when I left india, they were unhappy.
They said, only sending money won’t help.
Then I asked, what else you need??? I can send you anything from here.
They said, ‘YOU’

So I have a regret of being irresponsible son with emotionless bonding. 

Today I am on a flight to india and I promise I will sort out every regrets one by one.
First,
I don’t know whether she’s waiting for me or not, but if she’s there I will try to convince her, I will show my love for her.

Second,
I will try to find my friends and will try to show them that now also friendship exist in me. I know some of them will not even look at me but I will try hard and hard to let them know their importance in my life.

Last but not the least,
My family, my mom and dad…I know when they see me, they will get automatically convinced and they won’t ask any questions but then also I will make my point and I will let them know, irrespective of being on the other side of the world I always missed them like hell.

I am doing it this diwali…are you???
Lets brightens up this diwali and remember don’t keep any regrets in your heart.
    

 -Ram Tripathi

Note: Regrets are like cigarette, it will kill you slowly so don't keep it for so long.

Thursday, 16 October 2014

एक फूल को फूल बेचते देखा है मैंने...

मासूमियत...हल्की सी हँसी।
पाँव नंगे तो इस सिग्नल से उस सिग्नल तक भागना
चेहरे के रंग को धूप कब का ले उडी..
बाल जैसे तैसे बाँध लिया
अगर कोई उसे भी सजाता तो परियों से कम ना दिखती।
बेचने का जो तरीका उसने अभी सीख लिया हमने MBA करने के बाद भी नहीं सीखा..
हमने कई बार देखा है अच्छे को बुरा होते और बुरे को और बुरा होते
पर,
क्या आपने देखा है किसी फूल को फूल बेचते हुए..
नहीं ना???
मैंने देखा है..हाँ मैंने देखा है और कई बार देखा है।
अब आप देखिये...

-राम त्रिपाठी

नोट: इस पोस्ट का उद्देश्य आपको इमोशनल करना नहीं है।।

Wednesday, 15 October 2014

मेरी आँखों में...

नीला आसमान बादलों की ओंट से झाकता हुआ...
उसी बीच बड़ी सी सतरंगी इंद्र-धनुष जो पुरे आसमान को दो टुकड़े में बाँट रही है मानो जैसे सूरज और चाँद में बंटवारा हो रहा है।
या ऊंचाई पर उड़ते पंछियों का झुंड जिनमें आगे बढ़ने की होड़ लगी हुई है..
वो बेफिक्र हवा जिसके चलने से बादल कभी शेर बन जाते तो कभी हाथी..या फिर कभी जैसे एक औरत बन जाते जो सर पर पानी का मटका लिए बादलों से कुछ पानी उधार मांगने गयी है।
और तुम्हारा धुँधला सा चेहरा..तुम्हारे कानो का झुमका, जिसे छूते ही धड़कने स्कूल की घंटी जैसी बजती थी और फिर मन बेचैन होकर उस स्कूल के बच्चे जैसा भागता था बाहर बरफ का गोला खाने।
कुछ आँसू जो की पलकों पर आज भी बिन बुलाये मेहमान जैसे बैठे हैं जिनके जाने का कोई आसार नज़र नहीं आ रहा।
उस वक़्त भी यही आँसू थे और आज भी हैं..इसीलिये तो तुम्हारी याद और तुम्हारा चेहरा दोनों धुंधले हैं मेरी आँखों में।
एक कतरा ख्वाब भी हैं..छोटे ही हैं पर मेरी औकात के बराबर हैं।

इतना कुछ तो है इन छोटी सी आँखों में और क्या-क्या संभालूं..
आँख बंद करता हूँ तो इन सब से दूर हो जाता हूँ और फिर बेपनाह बेचैनियों से डर कर आँखों को फिर से खोल देता हूँ एक नया मंजर देखने के लिए चाहे फिर वो धुंधला ही क्यों ना हो..या फिर चाहे वो सच और झूठ से परे ही क्यों ना हो।

-राम त्रिपाठी

Tuesday, 14 October 2014

याद तेरी दामन से लिपटी...


आज जब मुझे मैक डोनाल्ड के आधुनिक वड़ापाव को खाने की इच्छा हुई तो गाड़ी उठायी और निकल पड़ा...घर से ज्यादा दूर नहीं था पर सोचा रास्ते में जाते-जाते अपने एक दोस्त को भी लेता चलू पर फिर ध्यान आया की वह तो कट्टर देशभक्त है और हर बार कहता है की ये बर्गर इन अंग्रेजो की खोज नहीं हैं, एक अंग्रेज भारत आया था और हमारे वड़ापाव बनाने की कला सीखकर गया और फिर क्या था उसे बर्गर नाम देकर बेचने लगा।
मैंने भी उससे कभी ये नहीं पूछा की, वो अंग्रेज कौन था, हाँ एक काम मैं जरुर करता था की कभी-कभी उसके साथ वड़ापाव खाता था और दोनों मिलकर बर्गर को गाली देते थे..उसे भी अच्छा लगता था। पर आज उससे  डिबेट करने का वक़्त नहीं था...क्यूंकि भूख कुछ ज्यादा ही जोरो की लगी थी।
मैक डोनाल्ड में अन्दर जाने से पहले एक छोटी सी बच्ची ने हाथ पकड़ा,
बाबू साहब कुछ खाने के लिए दे दो, मैं उसकी भूख को नज़र अंदाज़ करके खुद की भूख मिटाने अन्दर चला गया।
खाने का रटा- रटाया आर्डर दिया, हाथ में खाने के सामान से भरा प्लेट लिए आगे बढ़ा फिर वही तुम्हे देखा..ठीक मेरे सामने। तो फिर मैक डोनाल्ड जैसी एयर कंडीशन जगह पर भी बदन में गर्मी सी दौड़ने लगी और पसीने मुँह फाड़-फाड़कर माथे पर आने लगे। दिल वही निकल कर चमकती फर्श पर गिर गया। किसी तरह अपने दिल को उठाया और मेरा प्लेट जिसमे बर्गर,कोल्ड्रिंक और फ्रेंच फ़्राइस पहले से भरे हुए थे, उसी में एक कोने में अपने दिल को एडजस्ट कर दिया।
तुम भी मुझे देख रही थी पर पता नही क्यूँ, बर्गर को इस तरह खा रही थी की जैसे वो दुनिया का आखिरी बर्गर हो।
और यहाँ तो गला प्यास से सूखा जा रहा था। अचानक तुम उठी और मेरी तरफ आगे बढ़ी..मेरे शरीर में अजीब सी गुदगुदी हो रही थी।
मैं तुम्हे बोलने ही वाला था की देखो मेरे प्यार में कितनी कशिश है की तुम्हे देखते ही शरीर में गुदगुदी होने लगती है पर फिर पता चला की वो  मेरा फ़ोन मेरी जेब में वाइब्रेट हो रहा था। ये पागलपन की हद थी मैं जानता था पर तुम्हे देखने के बाद इतना होना तो लाज़मी था।
तुम पास आयी और मैंने जेब से फ़ोन निकाला पर जब दिल फिसल सकता है  तो फिर फ़ोन क्या बड़ी बात थी वो भी फिसल गया और गिर गया, वही जहाँ पर कुछ देर पहले मेरा दिल गिरा था।
मैंने तुम्हे देखते-देखते फ़ोन उठाने की कोशिश की पर मेरी तरह ही मेरा फ़ोन भी बिखर चुका था..

सिम अलग
बैटरी अलग
और कवर अलग...और हाँ वो रबड़ का टुकड़ा भी जिससे मैंने मेरे फ़ोन को उसके प्राण यानी सिम,बैटरी और कवर से बाँध रखा था।
तुम अपनी मुस्कराहट को छिपाने की लाख कोशिश कर रही थी पर मुझे पता था की तुम क्या सोच रही थी...
यही ना...की बिलकुल नहीं बदला वैसा ही है बिलकुल पागल का पागल। अच्छा किया छोड़ दिया।
वैसे तुम्हे देखकर मेरे फ़ोन के टुकड़े उठाना थोडा मुश्किल था, इसलिए थोड़ी देर नीचे देखने लगा और जैसे-तैसे फ़ोन को उठाया और एक कबाड़ी की तरह उसे यूँ ही रख लिया अपने जेब में।
ये वही फ़ोन था जिससे मैं तुम्हे छिप-छिपकर फ़ोन और मेसेज किया करता था हाँ  मैंने इसे बदला नहीं क्यूँकी ये मुझे मेरी गरीबी नहीं बल्कि तुम्हारी याद  दिलाता है। यही सब मैं तुमसे बोलने वाला था लेकिन जब सिर उठाया तब तक तुम जा चुकी थी और मेरे पास रह गया था तो वही
टूटा हुआ दिल...
टूटा हुआ फ़ोन...
ठंडा पड़ा मैक डी का प्लेट
और मेरी अन्धूरी भूख।
मैं तुम्हारा पीछा भी कर सकता था पर शायद वो मेरी फितरत नहीं...और फिर मुझे कुछ दिखायी दिया तो वो थी वो नन्ही बच्ची..जिसने थोड़ी देर पहले मुझसे कुछ खाने के लिए माँगा था। मैंने अपनी प्लेट उठायी और बाहर आया उस बच्ची के बगल में बैठ गया...बर्गर के दो टुकड़े किये आधा मेरे लिए और आधा उसके लिए। इतना ही नहीं बल्कि मैंने अन्दर से एक खाली गिलास लायी.. कोल्ड्रिंक को भी बिलकुल आधा आधा बाँटा।
मैंने कोल्ड्रिंक पीते हुए बच्ची की तरफ देखते हुए कहा, लोग कितने एहसान फरामोश होते हैं ना।
पर वो बच्ची तो कोल्ड्रिंक ऐसे पी रही थी जैसे ना जाने क्या मिल गया है, फिर मेरी बात वो क्या सुनती और उसका क्या उत्तर देती। उसके लिए तो भूख ही सबसे महत्वपूर्ण जरुरत थी.. पर शायद मेरे लिए कुछ और...
मुझे दुःख तो हुआ पर  शायद तुमसे ना मिल पाने के दुःख में मैंने किसी के पेट की भूख मिटा दी। अब फ्रेंच फ्राईज को बांटना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था मैं उसे छोड़ इस बात की ख़ुशी लिए घर वापस आ गया इसी उम्मीद में की शायद तुम भी एक दिन मेरे दिल की

बेचैनी को समझोगी, जैस मैंने आज उस बच्ची की भूख को समझा।।
खैर उम्मीद तो उम्मीद होती है उसे पूरा होते मैंने कम ही देखा है पर ये भी सुना है की उम्मीद पर ही दुनिया कायम है।
किसी मोड पर शायद फिर मुलाकात होगी...
-राम त्रिपाठी


Thursday, 9 October 2014

ह्रदय-स्पर्श

कुछ बातें जो दिल को छूती ही नहीं, बल्कि दिल में घर बनाती हैं,                         
हमसे कोई रिश्ता नहीं होता इनका, बस हो जाती है और चेहरों पर हल्की सी मुस्कान लाती हैं।

देखा है मैंने उन चोटी नन्ही आँखों को, धूप में लोगों को गुलाब बेचतें,                       
कई तो उनका मज़ाक उड़ाते, और कई तो आगे का रास्ता दिखातें।                            
वो बेंचता रहा आगे की कई गाड़ियों में पर किसी ने एक भी नहीं लिया,                        
खरीदने की बात तो छोड़ो, गुलाब लिए हुए बच्चे की तरफ किसी ने ध्यान भी नहीं दिया
मैं सोचता था जिनकी गाडियाँ छोटी है उनके दिल भी छोटे होंगे,                           
शायद से बड़ी गाड़ियों में बड़े दिल वाले होते होंगे                                         
पर ये क्या जब उसकी नज़र किसी बड़ी गाड़ी की तरफ जाती,                                
तो उसके पहुँचने से पहले ही खिड़कियाँ बंद हो जाती।                                   
छोटा दिल उदास था, आज कुछ ना पाने का एहसास था,                             
मुझे बुरा लगा मैंने जेब से 5 रूपए निकालकर उसके हाथ पर रख दिया              
उसने झट से मुझे एक गुलाब दिया।                                         
मुझे पता था की ये 5 रूपए क्या उसके चेहरे पर हंसी लाएँगे,                                   
मैंने कहा गुलाब वापस रख ले छोटे किसी और को बेचने के काम आएंगे।                    
उसने कहा, नहीं साहब मैंने अब से कसम खायी है,                                                
उसे हर दम पर निभाऊंगा,                                                                              
अब से मांग कर नहीं, कमाकर खाऊँगा,                                                           
मैंने मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ लगाया,                                                           
उसने झट से मुझे एक गुलाब थमाया।                                               
वो आगे बढ़ा पूरा गुलाब जो बेचना था,                   
पर क्या करें लोगों के जेब में 5 रूपए भी नहीं था।                                       
पर तभी अचानक उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गयी,                                         
ऐसा लगा उसके पैरों को एक नयी उड़ान मिल गयी,
एक छोटी बच्ची ने उसे चॉक्लेट दिया था,                                                     
ऐसा लग रहा था जैसे चॉक्लेट नहीं, चॉक्लेट की दुकान मिल गयी।                    
ये सब देख कर लगा की इंसान अपनी परेशानियों में मर गया है,                            
जो हम नहीं कर पाएँ वो एक नन्ही सी जान ने कर दिया है।                                
मैंने सोचा की बच्चे को बता दूँ की ज्यादा देर रखेगा तो चॉक्लेट पिघल जाएगी,            
इतने में पीछे का इंसान रूठ गया,
मैंने घूमकर देखा, तो उसने गुस्से में कहा, “भाई आगे चल सिग्नल छूट गया।”            

मैंने कहा था ना, “कुछ बातें जो दिल को छूती ही नहीं, बल्कि दिल में घर बनाती हैं,
हमसे कोई रिश्ता नहीं होता इनका, बस यूं ही लबों पे मुस्कान लाती हैं।”

मैं दिन की घटना की याद में मुसकुराते हुए, घर पर आया,                            
बच्चे के दिये हुए गुलाब के लिए मैंने अपने किताब में जगह बनाया,                
पर ये क्या हर दिन तो आते ही श्रीमती जी के हाथों से जलपान मिलता है,                     
पर अभी तक तो कोई पूछने तक नहीं आया।                                                     
मैंने श्रीमति जी को आवाज़ लगाई, अजी सुनती हो,                                                
उन्होने कहा मुझे पता है तुम आ गए हो, पानी खुद ले लो।                                        
मैंने कहा पानी तो मैं ले लूँगा, लेकिन प्यास कहाँ बुझती है,                                      
तुम्हारा चेहरा देखकर मेरी थकान जो मिटती है।                                                    
उन्होने कहा, “प्यार की बातें आप ना ही करों तो अच्छा हो,                                        
ये उनपर अच्छी लगती है जिनका प्यार सच्चा हो।”                                         
इन्ही हालातों में जीवन आगे बढ़ा,                                                                     
कुछ दिनो तक मुझे ऑफिस के बाद पानी खुद ही लेना पड़ा।                               
एक दिन मैंने फिर से पूछा की नाराजगी की वजह क्या है???                             
उन्होने कहा तुमसे शादी करके वैसे भी मुझे मिला क्या है।                                    
बात को घुमाओ मत बता भी दो,                                                                     
आज शादी के इतने सालों बाद मुझसे खफा क्यूँ हो।                                        
बता तो मैं दूँ लेकिन एक वादा करो,                                                             
सच सच बताओगे चाहे जो कुछ भी हो।                                                   
मैंने सोचा, ना जाने अब क्या पूछने वाली है,                                                     
पर बताना तो पड़ेगा, आखिर घरवाली है।                                                             
मैंने हिम्मत जुटायी, और कहा, “पूछो जो पूछना है”।                                          
जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो डरना क्या है।                                                        
उसने बड़ी मस्स्कत के बात राज़-ए-दिल बताया,                                               
बात सुनकर मुझे ज़ोर से हँसना आया।                                                                  
क्या पूछा ज़रा आप सब भी सुनिए,                                                       
उन्होने पूछा ये बताओ की आपके किताब में गुलाब कहाँ से आया।              
मैंने दिन की घटना उन्हे बिस्तार में बतायी,                                                          
तब जाकर उन्हे अकल आयी।                                                                             
मैंने कहा, “आज पता चला की तुम मेरे बारे में कैसा सोचती हो”                               
उन्होने कहा, “क्या सोचना, सूखा गुलाब होता तो ठीक भी था,                            
नया गुलाब देखकर लगा की शायद मोहब्बत भी नयी हो”
   
मैंने कहा था ना, “कुछ बातें जो दिल को छूती ही नहीं, बल्कि दिल में घर बनाती हैं,
हमसे कोई रिश्ता नहीं होता इनका, बस यूं ही लबों पे मुस्कान लाती हैं।”
  
-राम त्रिपाठी