आज रास्ते पर काफी दूर तलक गरीबी देखी तो जहन में दबाये उसे घर उठा लाया ।
नहीं, नहीं....घर के किसी कोने में नहीं फेका बल्कि संभालकर रख दिया अलमारी में...
एक अधजली सी रोटी, एक फटी पुरानी चद्दर, कुछ धुप और एक कार से फेका हुआ बिस्कुट का पैकेट जिसे वही कुछ बच्चे एक दूसरे से छीन रहे थें।।
इतना कुछ उठा लाया और सोचा की कभी इत्मिनान से बैठूँगा तो कुछ लिखूंगा इसी पर।।।
लेकिन फिर दिमाग में एक सवाल खुद को ही कोसने लगा की क्या मैं इतना गिरा हुआ हूँ या मेरी लिखने की शक्ति इतनी कमजोर है की किसी की जली हुई रोटी चुराकर अपना पेट भरूँ???
ये लेखन नहीं होगा यह एक चोरी होगी जिससे यह साबित होगा की मुझमें लिखने की कला नहीं है बल्की मैं रास्ते से लोगों की लाचारी चुराकर उसे पन्नों पर कुरेद-कुरेद कर लिखता हूँ..और उसे बेचकर अपना पेट भरता हूँ।।।
इस सोच ने मुझे अन्दर से झकझोर दिया और मैंने झट से अलमारी खोली...उठा लिया वो सब कुछ जो मैंने रास्ते से उठाया था और निकल पड़ा हूँ उसी रास्ते पर उसे वापस रखने...
इस बार उनकी हँसी चुराकर लाने की कोशिश करूँगा..
-राम त्रिपाठी
नोट: और हाँ इस लेख से मैं किसी लेखक या व्यक्ति विशेष पर कटाक्ष नहीं कर रहा हूँ...
