Friday, 22 August 2014

नीलापन...

है अगर हद तो आज हद हो जाने दे,
मेरे वजूद को चीरता हुआ आसमान तक जाने दे।
फिर कोई देखे तो लगे स्याही सा बदन मेरा,
मुझे आसमां के नीलेपन में कुछ यूँ घुल जाने दे।।

-राम त्रिपाठी

Sunday, 17 August 2014

कवि और कविता का जन्म...

कविता के पहले भाग में प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है की,
मैं रेंगते रेंगते आसमान तक पहुँचने ही वाला हूँ...
तुम्हारे लिए वहाँ से चाँद लेकर ज़रूर आऊँगा
पर थोडा इंतज़ार करना पड़ेगा क्यूँकी
मुझे वापस आने में वक़्त लगेगा।।
तब तक तुम मेरी लिखी कुछ कवितायेँ पढना,
जिनमें मैंने तुम्हारी और मेरी पहली मुलाक़ात के बारे में लिखा है
और जो तुमने कहा था की "क्या मेरे लिए चाँद तोड़कर लाओगे???" यह भी लिखा है मुझे अच्छी तरह याद है,
वही चाँद तो लाने जा रहा हूँ पर मेरा इंतज़ार करना।
और जब भी मन विचलित हो
तो मेरी डायरी के दिसंबर वाले पन्ने पर लिखी हुई,
मेरी वो कविता पढना जिसमे मैंने हम दोनों को दीपक और समां की उपमा दी है..
जिनका प्रेम इस दुनिया के लिए एक मिसाल है।
पर मैं जब तुम्हारे लिए चाँद तोड़कर लाऊंगा,
तब ना जाने कितने कवि मेरे दुश्मन बन जायेंगे..क्यूँकी वो फिर अपनी कविताओं में खूबसूरती की उपमा किसे देंगे।
ना जाने कितने अदने प्रेमी मुझसे बात तक नहीं करेंगे,
क्यूँकी जब भी वो आसमान में अपनी प्रेमिकावों को उनकी सूरत चाँद में दिखाने की कोशिश करेंगे तो उन्हें अँधेरा दिखेगा।।
पर फिर भी मैं तुम्हारे लिए चाँद लेकर आऊँगा
बस मेरा इंतज़ार करना ।।

पर कविता के दूसरे भाग में,
प्रेमिका ने प्रेमी को ये कह कर छोड़ दिया की,
वो तो कल्पनाओं के सागर में डूबने वाला एक डरा हुआ सा इंसान है।। जिसके लिए एक वक़्त का निवाला खरीदना भी दुसवार है..
केवल प्रेम से ही जीवन नहीं चलता है।

कविता के तीसरे भाग में,
प्रेमी ने सचमुच चाँद अपनी छत पर उतार लाया,
और वहीं कोने में बैठकर उसके आने का इंतज़ार कर रहा है।
वो तो अभी तक नहीं आयी पर जो कवि और प्रेमी उससे नाराज़ हैं,
वे उसपर जोर-जोर से अट्टहास कर रहे हैं।।
कई तो यह भी कह रहे हैं की वो नहीं आएगी,
तेरा चाँद को धरती पर लाना व्यर्थ हुआ।

कविता के चौथे और आखिरी भाग में
शोरगुल के बीच प्रेमी अपनी बाँहों में चाँद को समेटे हुए सब से उसे बचाता हुआ,
कभी आसमान की तरफ देखता है,
तो कभी चाँद की तरफ,
तो कभी रास्ते की तरफ..
पर अब उसके पास इंतज़ार के सिवा कुछ नहीं है,
लेकिन कविमन तो हरपल कल्पनाओं में जीने वाले नन्हे शिशु की तरह आशावादी होता है,
की आसमान में उछालने वाला उसे गिरने नहीं देगा।
इसलिए कवि भी छत के कोने में बैठा मुस्कुरा रहा है..
उसके तिरस्कार में
उसके अपमान में
उसके इंतज़ार में...
तब जाकर एक कवि और उसकी कविता जन्म लेती है।।

-राम त्रिपाठी

Sunday, 10 August 2014

मेरी कलम का जादू...

मेरी कलम का जादू...


काश मैं एक लेखक के साथ-साथ एक जादूगर भी होता,

तो मेरी कलम से ना जाने मैं कैसे-कैसे करतब दिखाता।।।


सबसे पहले तो मैं अपनी कलम से उस नन्ही लड़की का छोटा कमरा, जहाँ वो पैरों को मोड़कर सोती है उसे थोडा बड़ा कर देता, ताकि वो पैरों को फैलाकर सुकून से सो सकती।।


नहर पर पुल ना होने की वजह से नन्हे राजू को हर रोज स्कूल जाने में देरी होती है उस नहर पर अपनी कलम से एक छोटा पुल बना देता और राजू दौड़ते हुए पुल पार कर जाता।।


मीलों तपती धुप में सर पर पानी का मटका लिए पानी की तलाश करने वाली औरतों के लिए अपनी कलम से उनके घर के पास ही एक तालाब बना देता।।


मुसाफिर को उसकी मंजिल से अगर मिला नहीं पात़ा तो क्या अपनी कलम से उसके लिए रास्ते में एक अमलताश का पेड़ बना देता जो उसे छाँव और कुछ पल का आराम देता।।


ठिठुरती ठण्ड में फुटपाथ पर सोने वालों की चद्दर अपनी कलम से थोड़ी और बड़ी कर देता ताकी उनके पैर चद्दर से बाहर ना निकलते।।


काश मैं एक लेखक के साथ-साथ एक जादूगर भी होता,

तो मेरी कलम से ना जाने मैं कैसे-कैसे करतब दिखाता..

पर इस काश और वास्तविकता के बीच का अंतर देखकर मन को दुःख होता है,और शायद इसी उलझन में मेरी और मेरी कलम की अनबन रात भर चलती है,पर यथार्थ तो यह है की मैं केवल एक अदना सा लेखक हूँ, कोई जादूगर नहीं।।

-राम त्रिपाठी

Saturday, 9 August 2014

धीमी सी आग पर अपना इश्क पकता रहे...

धीमी सी आग पर अपना इश्क पकता रहे...

के तू साज है मेरी शायरी का...
रात भर कुछ पंक्तियों में, बोतलों में जगता रहे,
बस धीमी सी आग पर अपना इश्क पकता रहे।।।
साहिलों में समंदर ढूंढता हूँ ...
बिन पिए तेरी महफ़िलों में झूमता हूँ...
बोल फिर तेरी खिदमत करे या सजदा करे,
बस धीमी सी आग पर अपना इश्क पकता रहे।।।
अंजुमन में सारे गम के मेले लगे हैं..
जो दुशमनी में हैं वो दिल के सगे हैं..
जो प्यार में कुछ झूठ से बनता है तो बनता रहे,
बस धीमी सी आग पर अपना इश्क पकता रहे।।।
सातों समंदर पार करके आ गया हूँ ...
तेरे शहर में बादलों सा छा गया हूँ..
ले फिर अँधेरा बारिशों में दीप सा जलता रहे,
बस धीमी सी आग पर अपना इश्क पकता रहे।।।
खो गयी जो हसरतें मैं जनता हूँ..
है खता कुछ मेरी भी मैं मानता हूँ ..
चल लौट आ की प्यार अब उमर सा घटता रहे ,
बस धीमी सी आग पर अपना इश्क पकता रहे।।।

-राम त्रिपाठी