Monday, 21 July 2014

गली भूलूँ ना घर की मैं...

मैं कितना भी चमक जाऊं
मैं पग से ताज हो जाऊं...
मेरी इतनी सी हसरत है जमी पर पैर हो मेरा..
गली भूलूँ ना घर की मैं...

Sunday, 20 July 2014

मैं, मेरी कलम...


मैं रास्तों पर उसके निशान ढूँढता हूँ...

मैं जंगलों से डरता हूँ, अंधेरे से डरता हूँ,                                     
मैं रोशनी की खाक छानता हूँ।                                                   
मैं मोहब्बत की दहलीज पर घंटों बैठता हूँ,                                                                  
उसे देखता हूँ, निहारता हूँ, उससे रूठता हूँ।                        
खैर ये सिलसिला तो बरसों से चला आ रहा है,    
वो आता नहीं और मैं उसको पाने के बहाने तमाम ढूँढता हूँ,           
मैं रस्तों पर उसके निशान ढूँढता हूँ।  

मैं हमसफर बनना चाहता हूँ,                                                        
वो कहे तो उसकी रात का सहर बनना चाहता हूँ।          
मिलना-बिछड़ना तो आदत है जमाने की,                                              
वो डरता है पर मैं नहीं, मैं अपनी मोहब्बत का हसर जनता हूँ।   
वो माने ना माने मैं सदा-ए-गीत बनकर उसकी महफिल में गूँजता हूँ।                          
मैं रास्तों पर उसके निशान ढूँढता हूँ।

हम नफरत का व्यापार नहीं किया करते,                
हम मोहब्बत वाले हैं हमें मोहब्बत से ही तस्कीन मिलती है।      
छोड़ो उसके खून का रंग क्या है हमें क्या लेना,        
वक़्त है तो आ दिखाता हूँ, हमारी आँखों से दुनियाँ रंगीन दिखती है।     
पर नहीं शायद मोहब्बत में अब वफा का दौर कम है,         
उसके दिल में मुझे खोने का गम कम है,        
पर अब भी उसके दिल में अपना मकाम ढूँढता हूँ,                                                          
मैं रस्तों पर उसके निशान ढूँढता हूँ।

-राम त्रिपाठी



 


Sunday, 13 July 2014

तू मेरा ख्वाब है अनछुआ सा...

ये कैसी बेबसी की तुझे बस देखता हूँ  छू नहीं सकता ..
ये कैसी बेबसी की तुझे बस सोचता हूँ तेरा हो नहीं सकता..
कुछ नहीं बस एक एहसास है गम के धुआँ सा।।
तू मेरा ख्वाब है अनछुआ सा।।

क्या ये तड़प बस मुझमें है या है तेरी भी कुछ मजबूरियां हैं..
तू है मेरे आगोश में फिर क्यूँ अजब सी दूरियाँ हैं..
कुछ चोट है अहले वफ़ा पर दिल अभी बिखरा हुआ सा..
तू मेरा ख्वाब है कुछ अनछुआ सा ।।

इश्क की मुफलिसी ये तेरी देन है..
जो दर बदर तुझसा कुछ मांगता हूँ..
देने वाले को भरम क्या है दिल क्या जाने ..
वो शोहरते बज़्म दे मैं जिससे भागता हूँ..
की कल की चादरें ओढ़ी जमीं दिल आसमाँ सा ..
तू मेरा ख्वाब है अनछुआ सा ।।

वजन कैसे बताऊँ गम के जो तुझसे मिले हैं..
चल के तराजू में जरा सा तौलते हैं..
वफ़ा का नाम लिखकर उनको डुबाना चाहता है ..
वो दिल के सागरों में दिन ब दिन तैरते हैं..
जहन के शूल भी दिल फिर भी फ़ना सा ..
तू मेरा ख्वाब हैं अनछुआ सा ।।

-राम त्रिपाठी


Saturday, 12 July 2014

जीने का आसान तरीका

कोई ड्रेस दुकान के बाहर से अच्छा लगता है तो हम उसे और करीब से देखने दुकान के अन्दर भी जाते हैं लेकिन कुछ और ही लेकर बाहर आते हैं और फिर बाद में सोचते हैं की अगर वही ड्रेस लिया होता तो कितना अच्छा होता।।

सिग्नल पर गाड़ी रूकती है तो कभी-कभी एक छोटा बच्चा कांच पर धीरे से हाथ मारता है हमारी तरफ देखकर हँसता भी है पर भीख मांगता है और शायद इसीलिए उसकी हंसी पर हमारा ध्यान नहीं जाता...गाडी में 2-3 रूपए का छुट्टा ढूँढते ढूँढते..मन में विचार आता है की दूं या ना दूं..इतने में सिग्नल छूट जाता है..फिर रास्ते में ये खयाल आता है की काश उसे 2 रुपये दे दिया होता।।

खाने की छुट्टी पर ऑफिस का एक दोस्त हमपर भरोसा करके अपने घर की परेशानियों के बारे में बताता है..उसकी आँखों में दुःख और दर्द भी दिखता है..बुरा लगता है और शायद मैं उस परिस्थती में नहीं हूँ ये सोचकर हम अपने मन को शांत कर लेते हैं..पर कुछ मदद चाहिए क्या??? ये पूछने के बजाय हम शांत रहते हैं..कुछ देर में खाने का वक़्त ख़तम हो जाता है तो हम अपने-अपने काम पर लग जाते हैं पर जब काम करते करते नज़र उस दोस्त पर पड़ती है तो लगता है अगर उसकी परेशानी पुछा होता तो शायद उसे अच्छा लगता पर पूछना तो छोड़ो अगर उसके कंधे पर हाथ रखकर मैं साथ हूँ..इतना भी बोल होता तो शायद उसे किसी अपने के होने का एहसास होता।।
ऐसा ही होता है हरदम..छोटी छोटी बातें रह जाती हैं पर इन छोटी बातों की होने की एक वजह होती है।। जो वक़्त गुजर गया वो वापस नहीं लौटता बस दिल में एक टीस रह जाती है की जो मैं आसानी से कर सकता था शायद मैंने नहीं किया।।
जीने की वजह ढूंढते ढूंढ़ते..जीना कैसे है शायद हम भूल जाते हैं।।

अगर हँसना अच्छा लग रहा है तो हंसो उसमें कंजूसी कैसी..
और अगर बुरा लग रहा है तो आँखों पर बाँध लगाने से क्या फायदा..
कुछ अच्छा लग रहा है तो उसे अच्छा बोलने में कैसी झिझक..
कुछ अच्छा नहीं लगा तो वो भी बोलो उसको दिल में छुपाने से कोई मतलब नहीं..
हर वक़्त जो सही लगे जो अच्छा हो वो करो..बाद में उसके बारे में सोचने से कुछ नहीं मिलेगा सिवाय दर्द के..
जिंदगी में छोटी छोटी बातों को महत्व देना चाहिए..इन्ही छोटी चीजों में जीवन कैसे जीना है वो हमें समझता है..
हमारे सबसे प्रिय गाने पर अगर हमारा मन और सर ना झूमे तो क्या ज़िन्दगी।।

लेखक: राम त्रिपाठी