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कुछ चंद पलों तक आँखों में नमी थी अब फिर हंसी है
ज़िन्दगी ना जाने किस कश्मोकश में फसीं है।।
कुछ पैगाम जो तूने दिए तोह उन पर ऐतबार भी है
पर अँधेरा इक दिन छटेगा ये इंतज़ार भी है।।
छोटा हूँ ये एहसास हर पल सता जाता है
जिसे देखो वही गिरेबान तक चला आता है।।
इक तरफ आग है तो सालों की पनपी बेबसी है
ज़िन्दगी ना जाने किस कश्मोकश में फसीं है।।
ये गुलामी की बेडि यां कितनी भी जकड ले पर मेरा दिल आज़ाद है
तू सितम करके तो देख यहाँ सब्र लाजवाब है।।
सर पर नीला आसमान है तो सिरहाने में जमीं है
इस भवर में हम तो फिर भी कुछ नहीं है ।।
कुछ चंद पलों तक आँखों में नमी थी अब फिर हंसी है
ज़िन्दगी ना जाने किस कश्मोकश में फसीं है।।
रफ़्तार सफ़र में है तो मंजिल भी दूर है
वहाँ एक तल्क्क सवेरा है तो अँधियारा भी उसी ओर है।।
उधार के पंखों से उड़ने को मन बेताब है
उड़ना कितना दूर है और कब तक इसका भी हिसाब है।।
फिर भी ठुकरा कर सारी बंदिशे हसरते आसमान में उडती हैं
पर नीचे नज़र गयी तो जमीन राह तकती है।।
यहाँ दिल घायल है की दो कदम चलना भी नामुमकिन है
और वहां ज़िन्दगी दुल्हन सी सजी है।।
कुछ चंद पलों तक आँखों में नमी थी अब फिर हंसी है
ज़िन्दगी ना जाने किस कश्मोकश में फसीं है।।
-राम त्रिपाठी