कुछ बातें जो दिल को छूती ही नहीं, बल्कि दिल में घर बनाती हैं,
हमसे कोई रिश्ता नहीं होता इनका, बस हो जाती है और चेहरों पर हल्की सी मुस्कान लाती हैं।
देखा है मैंने उन चोटी नन्ही आँखों को, धूप में लोगों को गुलाब बेचतें,
कई तो उनका मज़ाक उड़ाते, और कई तो आगे का रास्ता दिखातें।
वो बेंचता रहा आगे की कई गाड़ियों में पर किसी ने एक भी नहीं लिया,
खरीदने की बात तो छोड़ो, गुलाब लिए हुए बच्चे की तरफ किसी ने ध्यान भी नहीं दिया
मैं सोचता था जिनकी गाडियाँ छोटी है उनके दिल भी छोटे होंगे,
शायद से बड़ी गाड़ियों में बड़े दिल वाले होते होंगे
पर ये क्या जब उसकी नज़र किसी बड़ी गाड़ी की तरफ जाती,
तो उसके पहुँचने से पहले ही खिड़कियाँ बंद हो जाती।
छोटा दिल उदास था, आज कुछ ना पाने का एहसास था,
मुझे बुरा लगा मैंने जेब से 5 रूपए निकालकर उसके हाथ पर रख दिया
उसने झट से मुझे एक गुलाब दिया।
मुझे पता था की ये 5 रूपए क्या उसके चेहरे पर हंसी लाएँगे,
मैंने कहा गुलाब वापस रख ले छोटे किसी और को बेचने के काम आएंगे।
उसने कहा, नहीं साहब मैंने अब से कसम खायी है,
उसे हर दम पर निभाऊंगा,
अब से मांग कर नहीं, कमाकर खाऊँगा,
मैंने मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ लगाया,
उसने झट से मुझे एक गुलाब थमाया।
वो आगे बढ़ा पूरा गुलाब जो बेचना था,
पर क्या करें लोगों के जेब में 5 रूपए भी नहीं था।
पर तभी अचानक उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गयी,
ऐसा लगा उसके पैरों को एक नयी उड़ान मिल गयी,
एक छोटी बच्ची ने उसे चॉक्लेट दिया था,
ऐसा लग रहा था जैसे चॉक्लेट नहीं, चॉक्लेट की दुकान मिल गयी।
ये सब देख कर लगा की इंसान अपनी परेशानियों में मर गया है,
जो हम नहीं कर पाएँ वो एक नन्ही सी जान ने कर दिया है।
मैंने सोचा की बच्चे को बता दूँ की ज्यादा देर रखेगा तो चॉक्लेट पिघल जाएगी,
इतने में पीछे का इंसान रूठ गया,
मैंने घूमकर देखा, तो उसने गुस्से में कहा, “भाई आगे चल सिग्नल छूट गया।”
मैंने कहा था ना, “कुछ बातें जो दिल को छूती ही नहीं, बल्कि दिल में घर बनाती हैं,
हमसे कोई रिश्ता नहीं होता इनका, बस यूं ही लबों पे मुस्कान लाती हैं।”
मैं दिन की घटना की याद में मुसकुराते हुए, घर पर आया,
बच्चे के दिये हुए गुलाब के लिए मैंने अपने किताब में जगह बनाया,
पर ये क्या हर दिन तो आते ही श्रीमती जी के हाथों से जलपान मिलता है,
पर अभी तक तो कोई पूछने तक नहीं आया।
मैंने श्रीमति जी को आवाज़ लगाई, अजी सुनती हो,
उन्होने कहा मुझे पता है तुम आ गए हो, पानी खुद ले लो।
मैंने कहा पानी तो मैं ले लूँगा, लेकिन प्यास कहाँ बुझती है,
तुम्हारा चेहरा देखकर मेरी थकान जो मिटती है।
उन्होने कहा, “प्यार की बातें आप ना ही करों तो अच्छा हो,
ये उनपर अच्छी लगती है जिनका प्यार सच्चा हो।”
इन्ही हालातों में जीवन आगे बढ़ा,
कुछ दिनो तक मुझे ऑफिस के बाद पानी खुद ही लेना पड़ा।
एक दिन मैंने फिर से पूछा की नाराजगी की वजह क्या है???
उन्होने कहा तुमसे शादी करके वैसे भी मुझे मिला क्या है।
बात को घुमाओ मत बता भी दो,
आज शादी के इतने सालों बाद मुझसे खफा क्यूँ हो।
बता तो मैं दूँ लेकिन एक वादा करो,
सच सच बताओगे चाहे जो कुछ भी हो।
मैंने सोचा, ना जाने अब क्या पूछने वाली है,
पर बताना तो पड़ेगा, आखिर घरवाली है।
मैंने हिम्मत जुटायी, और कहा, “पूछो जो पूछना है”।
जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो डरना क्या है।
उसने बड़ी मस्स्कत के बात राज़-ए-दिल बताया,
बात सुनकर मुझे ज़ोर से हँसना आया।
क्या पूछा ज़रा आप सब भी सुनिए,
उन्होने पूछा ये बताओ की आपके किताब में गुलाब कहाँ से आया।
मैंने दिन की घटना उन्हे बिस्तार में बतायी,
तब जाकर उन्हे अकल आयी।
मैंने कहा, “आज पता चला की तुम मेरे बारे में कैसा सोचती हो”
उन्होने कहा, “क्या सोचना, सूखा गुलाब होता तो ठीक भी था,
नया गुलाब देखकर लगा की शायद मोहब्बत भी नयी हो”
मैंने कहा था ना, “कुछ बातें जो दिल को छूती ही नहीं, बल्कि दिल में घर बनाती हैं,
हमसे कोई रिश्ता नहीं होता इनका, बस यूं ही लबों पे मुस्कान लाती हैं।”
-राम त्रिपाठी